प्रसव पीड़ा


डूब रहा घर वार सभी का,
  चिंतित हर नर नारी हैं ।
     त्राहिमाम मचा जन-जन में,
         आयी आपदा भारी हैं ।
प्रसव पीड़ा से तड़प रही,
   महिला की बढ़ी लाचारी हैं ।
      घिरा गाँव भीषण संकट में,
           बढ़ा बाढ़ का पानी हैं ।।
घरवालों की सूझबूझ अब,
   तनिक काम न आता हैं ।
      उफान भरी नदियों को देख,
          अब मार्ग नज़र न आता हैं ।।
हताश, निराश हुए परिजन,
  अपने सपनों को तोड़ कर ।
      आशा की किरणें जागी,
          रक्षकों को आते देख कर ।।
त्वरित गति अपना जवान,
   महिला को बोट तक लाते हैं ।
       सांत्वना व सुरक्षा देकर,
           अपने संग ले जाते हैं ।।
प्रसव पीड़ित तड़पती महिला,
     दर्द नहीं सह पाती हैं ।
       बचाव कर्मियों के मदद से,
            तैयारी वही हो जाती हैं ।।
अपने कौशल के परिचय से,
   ये दे जाते खुशहाली हैं ।
      बाढ़ के लहरों के बीच,
          हाँ गूंज उठी किलकारी हैं ।।              

स्वरचित मौलिक, सर्वाधिकार सुरक्षित
      ✍️ चंद्रगुप्त नाथ तिवारी         
                सुंदरपुर बरजा  
            आरा(भोजपुर) बिहार

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2 Comments

Swati chourasia

19-Jan-2022 07:31 PM

Very beautiful 👌

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धन्यवाद जी

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